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Showing posts from September, 2013

रणथम्भौर दुर्ग-

सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की विषम आकृति वाली सात पहाडि़यों से घिरा हुआ है। यह किला यद्यपि एक ऊँचे शिखर पर स्थित है, तथापि समीप जाने पर ही दिखाई देता है। यह दुर्ग चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ है तथा इसकी किलेबन्दी काफी सुदृढ़ है। इसलिए अबुल फ़ज़ल ने इसे बख्तरबंद किला कहा है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने करवाया था। हम्मीर देव चौहान की आन-बान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर कर लिया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है। रणथम्भौर किले में बने हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी, सुपारी महल, बादल महल, बत्तीस खंभों की छतरी, जैन मंदिर तथा त्रिनेत्र गणेश मंदिर उल्लेखनीय हैं। गणेश मन्दिर की विशेष मान्यता है

जूनागढ़ का किला बीकानेर

जालौर का किला

जालौर का किला सुकडी नदी के किनारे स्थित है। इस किले का निर्माण प्रतिहारों ने 8वीं सदी में कराया था। स्वर्णगिरी (सोनगिरि) पर्वत पर निर्मित जालौर का ऐतिहासिक दुर्ग ' 'गिरि दुर्ग'' का अनुपम उदाहरण है। शिलालेखों में जालौर का नाम जाबालिपुर, जालहुर, जालंधर या स्वर्णगिरी (सुवर्ण गिरि या सोनगिरि या कनकाचल या सोनगढ़ या सोनलगढ़) मिलता है। इसका जबालिपुर, जालहुर या जालंधर नाम संभवत यहाँ के पर्वतों में जाबाली ऋषि और जालंधर नाथ जी के तपस्या करने के कारण पड़ा होगा। यहां सोनगिरि से प्रारंभ होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा “सोनगरा” उपनाम से लोक प्रसिद्ध हुई है। जालौर दुर्ग पर विभिन्न कालों में प्रतिहार, परमार, चालूक्य (सोलंकी), चौहान, राठौड़ इत्यादि राजवंशो ने शासन किया था। वही इस दुर्ग पर दिल्ली के मुस्लिम सुल्तानो और मुग़ल बादशाहों तथा अन्य मुस्लिम वंशो का भी अधिकार रहा। जालौर का यह किला 800 सौ गज लंबा और 400 गज चौड़ा है तथा आसपास की भूमि से यह लगभग 1200 फीट ऊंचा है। जालौर दुर्ग के प्रमुख सामरिक स्थापत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी उन्नत सर्पिलाकार प्राचीर ने अपन

जयपुर का जयगढ़ का किला

चित्तौड़गढ़ का किला

Gagron Fort (Jhalawar Rajasthan) | गागरोण का किला (झालावाड)

गागरोण का किला (झालावाड)- >. झालावाड़ से चार किमी दूरी पर अरावली पर्वतमाला की एक सुदृढ़ चट्टान पर कालीसिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता है। पानी और जंगलों से सुरक्षित यह किला राजस्थान के विशिष्ट ऐतिहासिक स्थलों में से एक है जिसमें से यह ‘वन’ और ‘जल’ दुर्ग दोनों हैं। >. इस किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था। इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था। >. किले के भीतर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्त्वपूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं। >. यहां 14 युद्ध और 2 जोहर (जिसमें महिलाओं ने अपने को मौत के गले लगा लिया) हुए हैं।  >. दुर्गम पथ , चौतरफा विशाल खाई तथा मजबूत दीवारों के कारण यह दुर्ग अपने आप में अनूठा और अद्भुत है। किले के दो मुख्य प्रवेश द्

अकबर का किला या मैगजीन किला, अजमेर

1.       अजमेर में स्थित इस किले का निर्माण 1570 में अकबर ने करवाया था। 2.       इस किले को “अकबर का दौलतखाना” या ‘मैग्जीन’ के नाम से भी जाना जाता है। 3.       अजमेर शहर के बीच स्थित यह पश्चिमोन्मुख किला तीन वर्ष में बन कर तैयार हुआ था। 4.       हिन्दू-मुस्लिम पद्धति से निर्मित इस किले का निर्माण अकबर ने ख्वाजा मुइनुद्दीन हसन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु करवाया था। 5.       मुस्लिम दुर्ग पद्दति से बना यह राजस्थान का एकमात्र किला माना जाता है। 6.       1576 में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को भी अन्तिम रूप इसी किले में दिया गया था। 7.       अकबर जब भी अजमेर आया इसी किले में ठहरा था। 8.       मुग़ल शहंशाह जहाँगीर उदयपुर के महाराणा अमर सिंह को हरा कर मेवाड़ को अधीनता में लाने के लिए 18 नवम्बर 1613 को अजमेर आया था तथा तीन वर्ष तक इसी किले में रूका था। 9.       किले के मुख्य द्वार को “जहाँगीरी दरवाजा” भी कहते हैं । जहांगीर अपने अजमेर प्रवास के दौरान प्रतिदिन इस दरवाजे पर स्थित झरोखे में बैठ कर जनता को दर्शन देता था तथ