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राजस्थान पशु बांझपन निवारण शिविर योजना (Combat Infertility in Cattle)

राजस्थान  पशु बांझपन निवारण शिविर योजना 

(Combat Infertility in Cattle)

उद्देश्यः-

राजस्थान प्रदेश में उपलब्ध पशुधन में से लगभग 10 प्रतिशत पशुधन प्रतिवर्ष बांझ होता है। बांझ पशुधन का समय पर उपचार होने से इन्हें प्रजनन योग्य बनाकर गर्भित किया जा सकता है। इसके लिये पशुपालकों को अपने पशुओं को बांझ होने से बचाने के उपायों की जानकारी उपलब्ध करवाना तथा उन्हें ऐसे पशुओं का चिह्नीकरण कर समय पर पूर्ण इलाज करवाने के लिये प्रेरित करना आवश्यक है।


कार्य योजनाः-

इस योजना के तहत् समस्त जिलों में पशुधन की संख्या एवं पशुधन के आधार पर 4 से 5 गांवों के एक काॅम्पेक्ट क्षेत्र का बांझ निवारण शिविर लगाने हेतु चयन किया जाता है। चयनित गांवों के बांझ पशुओं के पशुपालकों की सूची सर्वे कर तैयार की जाती है।

प्रत्येक शिविर की अवधि 5 दिवस होती है। प्रत्येक शिविर में कम से कम 50 पशुओं का बांझपन उपचार किया जाना आवश्यक है। शिविरों के आयोजन हेतु औषधियों का उपयोग पशुधन निःशुल्क आरोग्य दवा योजनान्तर्गत उपलब्ध औषधियों में से किया जाता है। शिविरों के आयोजन हेतु यदि ऐसी औषधियों की आवश्यकता है जो विभागीय अनुमोदित सूची में अनुमोदित नहीं है तो ऐसी औषधियों का क्रय पशुधन निःशुल्क आरोग्य दवा योजनान्तर्गत इमरजेन्सी औषधियों हेतु उपलब्ध प्रावधान में से क्रय की जाती है।

शिविर में प्रथम दिन बांझ पशुओं की Rectal palpation की जाती है जिसके आधार पर बांझपन चिकित्सा की जाती है। सर्वप्रथम समस्त बांझ पशुओं की सामान्य बांझपन चिकित्सा की जाती है (डीवर्मिग, मिनरल मिक्सचर, विटामिन-ए, डी-3, ई तथा सोडियम एसिड फाॅस्फेट, cocu tablet,clomin tablet)।

Rectal palpation की finding के आधार पर ovary में बनने वाली ल्यूटियल अथवा फालीक्यूलर संरचनाओं का रिकार्ड संधारण किया जाता है। पशुओं की सामान्य बांझपन चिकित्सा उपरांत गोष्ठी कर पशुपालकों को अपने पशुओं को बांझ होने से बचाने के उपायों की जानकारी उपलब्ध करवायी जाती है तथा उन्हें ऐसे पशुओं का चिह्नीकरण कर समय पर पूर्ण इलाज करवाने के लिये प्रेरित किया जा जाता है। इस शिविर की अवधि 2 दिवस होती है।

इस शिविर के प्रत्येक 7 दिवस के अंतराल पर 1-1 दिवस के तीन फालोअप शिविरों का आयोजन किया जाता है जिसमें उपचारित पशुओं की पुनः Rectal palpation की जाती है तथा ovary में बनने वाली ल्यूटियल अथवा फालीक्यूलर संरचनाओं की वर्तमान स्थिति का आंकलन कर जो पशु ताव में नहीं आए है उनमें आवश्यकतानुसार हार्मोन चिकित्सा की जाती है। साथ ही डीवर्मिग, मिनरल मिक्सचर, विटामिन-ए, डी-3, ई तथा सोडियम एसिड फाॅस्फेट, co,cu tablet, clomin tablet का उपयोग भी आवश्यकतानुसार नियमित रखा जाता है। उपचार से जो पशु ताव में आए है उनमें कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान के 60 से 90 दिन उपरांत गर्भ परीक्षण किया जाता है। उपचारित पशुओं का नियमित फालोअप संबंधित पशु चिकित्सा संस्था द्वारा किया जाता है जिससे बांझपन मुक्ति के परिणाम ज्ञात हो सकेगें।


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