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National Awardees artists of Rajasthan राजस्थान के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार

National Awardees artists of Rajasthan राजस्थान के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कलाकार   S.No. Name of Artist Craft 1 एजाज मोहम्मद Avaz Mohammed   Lac Work लाख वर्क 2 बाबूलाल मारोटिया Babu Lal Marotia  Miniature Paintings लघु चित्रकारी 3 बद्रीनारायण    मारोटिया Badri Narain Marotia    Glass Studded Painting ग्लास जड़ित चित्रकारी 4 Chothmal Jangid चोथमल जांगिड Sandalwood Carving चन्दन काष्ठ नक्काशी 5 Dharmendra Kumar Jangid धर्मेंद्र कुमार जांगिड़ Sandal Wood Carving चन्दन काष्ठ नक्काशी 6 Gayur Ahmed गयूर अहमद Wooden Block Making लकड़ी के ब्लॉक बनाना 7 Gopal Prasad Sharma गोपाल प्रसाद शर्मा Miniature Painting लघु चित्रकारी 8 हनुमान सैनी Hanuman Saini Miniature Painting लघु चित्रकारी 9 हरि नारायण मारोटीया Hari Narayan Marotia Miniature P

राजस्थान में शिल्प की अनूठी परंपरा से युक्त पांच दिवसीय शिल्प शाला

राजस्थान में शिल्प की अनूठी परंपरा से युक्त पांच दिवसीय शिल्प शाला सोमवार २४ जून को भारतीय शिल्प संस्थान और उद्यम प्रोत्साहन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय शिल्प शाला का उद्घाटन जयपुर के भारतीय शिल्प संस्थान परिसर में प्रदेश के जाने माने शिल्प गुरूओं और 150 से अधिक जिज्ञासुओं उपस्थिति में किया गया। 200 रुपये पंजीयन शुल्क को छोड़कर यह शिल्प शाला पूरी तरह निःशुल्क रखी गई।  पांच दिवसीय शिल्प शाला में निम्नांकित शिल्प गुरू द्वारा शिल्प की बारीकियों का प्रशिक्षण दिया जायेगा - कुंदन मीनाकारी के नेशनल अवार्डी सरदार इन्दर सिंह कुदरत मीनकारी में राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त प्रीति काला मिनिएचर पेंटिंग में नेशनल अवार्डी बाबू लाल मारोठिया लाख शिल्प में नेशनल अवार्डी ऎवाज अहमद मिट्टी के बर्जन/टेराकोटा में राधेश्याम व जीवन लाल प्रजापति ब्लू पॉटरी में संजय प्रजापत और गौपाल सैनी ज्वैलरी वुडन क्राफ्ट में भावना गुलाटी हाथ ठप्पा छपाई में नेशनल अवार्डी संतोष कुमार धनोपिया हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग में नेशनल अवार्डी अवधेश पाण्डेय पेपरमैशी में सुमन सोनी

Rajasthani Traditional Dress Female Chundar or Chundari - राजस्थान की स्त्री वेशभूषा-चूंदड़ या चूंदड़ी

राजस्थान की स्त्री वेशभूषा-चूंदड़ या चूंदड़ी लाल रंग में रंगी विशेष प्रकार की ओढ़नी चूंदड़ या चूंदड़ी कहलाती है। यह ढाई गज लम्बी और पौने दो गज चौड़ी होती है। इसमें विशेष रूप से बंधेज की छोटी-छोटी बिन्दियों से भांति-भांति के अलंकरण किए जाते हैं। इसे चूनरी, बदांगर, कोसनिया आदि नामों से जाना जाता है। राजस्थानी संस्कृति में चूंदड़ का अत्यंत महत्व है। लगभग सभी मांगलिक अवसरों पर इसका प्रयोग होता है। यह सुहागिन स्त्रियों द्वारा विशेष रूप से पहनी जाती है। विवाह में अपने ननिहाल से प्राप्त चूंदड़ी पहनकर वधू सात फेरों को पूर्ण करती हैं, कुछ स्थानों पर यह चूंदड़ी ससुराल पक्ष से पहनाई जाती है। लड़की जब पीहर से ससुराल जाती है तब देहरी पूजते समय चूंदड़ धारण करती है। विवाह के बाद वर्ष भर किसी भी शुभ आयोजन या त्यौहार पर उन्हें वही चूंदड़ी पहनकर विभिन्न रस्मों या पूजा का निर्वाह करना होता है।  विवाह के पश्चात पहली गणगौर पर नववधू को सिंजारे के दिन अपने ससुराल से विशेष चूंदड़ पहनाई जाती है, जिसे पहनकर वह गणगौर की पूजा करती हैं। बहन के बच्चों के विवाह के समय "भात" रस्म में भी भाई अपनी बहन को चूंदड़

हाथकरघा बुनकरों को राज्य व जिला स्तर पर दिए जाएंगे नकद पुरस्कार

हाथकरघा बुनकरों को राज्य व जिला स्तर पर दिए जाएंगे नकद पुरस्कार- राज्य के हाथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। जिला स्तरीय पुरस्कारों के लिए जिले के महाप्रबंधक जिला उद्योग केन्द्र के कार्यालय में 30 जून तक आवेदन किए जा सकते हैं। जिला स्तरीय पुरस्कारों के लिए चयनित प्रथम व द्वितीय पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में से राज्य स्तरीय पुरस्कारों के लिए चयन किया जाएगा। राज्य स्तरीय पुरस्कारों के लिए जिला उद्योग केन्द्रों द्वारा आयुक्त उद्योग विभाग के कार्यालय में नाम भेजे जाएंगे। जुलाई में राज्य स्तरीय पुरस्कारों का भी चयन किया जाएगा।    उद्योग व राजकीय उपक्रम मंत्री श्री परसादी लाल मीणा ने बताया कि राज्य स्तरीय पुरस्कारों में पांच नकद पुरस्कार दिए जाएंगे। इनमें पहले पुरस्कार के रुप में 21 हजार रु., 11 हजार रु. द्वितीय पुरस्कार, 7100 रु. तृतीय पुरस्कार और दो बुनकरों को 3100-3100 रु. सांत्वना पुरस्कार के रुप में दिए जाएंगे। इसी तरह से जिला स्तर पर दिए जाने वाले पुरस्कारों मे 5100 रु. का नकद पुरस्कार पहले

Industry GK- felt or numdah of Rajasthan - राजस्थान का नमदा उद्योग

  राजस्थान का नमदा उद्योग - नमदा मूल नाम ''नमता'' शब्द से आता है, जो एक संस्कृत शब्द है और इसका मतलब 'ऊनी चीजें' हैं। नमदा भेड़ की ऊन से बनता है। नमदा को ऊनी गलीचा या चटाई कहा जा सकता है। नमदे की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह भी है कि यह गलीचे के मुकाबले अत्यंत सस्ता होता है। नमदों की उत्कृष्ट कलाकृतियों की थीम अद्वितीय विषयों से युक्त फूलों, पत्तियों, कलियों और फलों के विभिन्न पैटर्न पर आधारित होते हैं। राजस्थान का टोंक शहर देश व विदेश में नमदों के शहर के रूप में विख्यात है। इसी कारण  टोंक को नमदो का शहर या नमदा नगरी भी कहा जा सकता है। गुणवत्ता के कारण टोंक के नमदे की मांग भारत में ही नहीं वरन विदेशों तक में है। ऐसा माना जाता है कि टोंक जिले के नमदा क्लस्टर में सामूहिक रूप से 500 से अधिक कारीगर और श्रमिक का निर्माण कार्य में संलग्न हैं। जिला उद्योग केंद्र, टोंक कार्यालय में नमदा आधारित शिल्प में नमदा निर्माण के लगभग 40 सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (एमएसएमई) पंजीकृत हैं, जिनमें से कुछ गैर कार्यात्मक को छोड़कर, शेष नमदा के सक्रिय विनिर्माण और व्यापार

Fabulous Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की बेहतरीन कोफ़्तगिरी कला

Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की कोफ्तगिरी कला कोफ़्तगिरी एक पारंपरिक शिल्प है जिसका अभ्यास वर्षों से मेवाड़ के विभिन्न जिलों में किया जाता रहा है। वर्तमान यह शिल्प जयपुर, अलवर और उदयपुर में दृष्टिगोचर होता है। जयपुर में, आयात-निर्यात बाजार में कोफ़्तगिरी शिल्प के आर्टिकल्स देखे जा सकते हैं जबकि, उदयपुर में इसके क्लस्टर पाए जाते हैं। अलवर के तलवारसाज लोग इस कला से जुड़े हुए हैं। उदयपुर के सिकलीगर लोग इस कला में महारत रखते हैं। कोफ़्तगिरी एक मौसमी शिल्प नहीं है, बल्कि एक बार किसी कलाकार को जब इसमें उचित गुणवत्ता हासिल हो जाती है तो उसके कोफ़्तगिरी के उत्पाद की अत्यधिक मांग हो जाती है, जो वर्षभर बनी रहती है। कोफ़्त गिरी हथियारों को अलंकृत करने की कला है, जो भारत में मुगलों के प्रभाव के कारण उभरी थी। इसमें जडाव (इनले) और ओवरले दोनों प्रकार की कला का कार्य होता है। फौलाद अथवा लोहे पर सोने की सूक्ष्म कसीदाकारी कोफ्त गिरी कहलाती है। कोफ़्तगिरी शब्द लोहे को "पीट-पीट कर" उस पर किसी कलात्मक पैटर्न को उभारने की क्रिया को कहते हैं। यह एक ओवरले कला है जिसमे विशेष

Terracotta art of Rajasthan- राजस्थान की मृण कला - राजस्थान की टेराकोटा कला

राजस्थान राज्य का सम्पूर्ण भू-भाग मृण कलाओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है तथा इनमें जैसलमेर का पोकरण, मेवाड़ का मोलेला व गोगून्दा तथा ढूंढाड़ व मेवात स्थित हाड़ौता व रामगढ़ की मिट्टी की कला की प्रसिद्धि देश में ही नहीं, अपितु विदेशों तक में फैली हुई है। मेवाड़ स्थित आहाड़ सभ्यता, गिलूण्ड, बालाथल आदि के साथ ही हनुमानगढ़ का कालीबंगा एैसे स्थल रहे है जो पुरासम्पदा के रूप में माटी की कला, मोहरे, मृदभाण्ड व मृणशिल्प आदि राज्य के पुरा कला वैभव की महता को रेखांकित करते हैं। मोलेला की मृणकला (Terracotta art of Mollela, Rajsamand)- राजसमन्द जिले के मोलेला गाँव की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान माटी से लोक देवी-देवताओं की हिंगाण ( देवताओं की मूर्तियाँ) बनाने के रूप में हैं। मोलेला गांव नाथद्धारा से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मोलेला गांव का मृण शिल्प या कह सकते है टेराकोटा आर्ट विश्व प्रसिद्ध है। यहां के मृण शिल्पकार विविध प्रकार के लोक देवी-देवताओं का माटी में रूपांकन करते हैं, जिन्हें मेवाड़ के साथ ही गुजरात व मध्यप्रदेश की सीमाओं पर स्थित आदिवासी गांवों के लोग खरीदकर ले जाते ह

Tarkashi or Inlaying in wood: Famous Rajasthani Artifact तारकशी - राजस्थान की एक प्रसिद्ध कला

तारकशी या इनले वर्क ऑन वुड - राजस्थान की एक प्रसिद्ध कला जयपुर में 'इनले वर्क ऑन वुड या तारकशी की कला' मध्यकाल से प्रचलित था। लकड़ी पर तारकशी की कला एक अनुपम कला है। तारकशी के कलात्मक कार्य के प्राचीन नमूनों को राजस्थान के पुराने महलों, हवेलियों आदि के दरवाजों, झरोखों की खिडकियों के अलावा सिंहासनों, फर्नीचर, हाथी के हौदों और घोड़े या ऊंट की काठी एवं अन्य कलात्मक वस्तुओं में देखा जाता है। तारकशी एक प्रकार की काष्ठकला है। तारकशी का शाब्दिक अर्थ "तार को कसना" है, अर्थात इस कला में तार को लकड़ी के अन्दर जड़ा जाता है। अंग्रेजी में इसे Inlaying in wood कहा जाता है जिसका अर्थ "लकड़ी में तार जड़ना" है। तारकशी के काम को दृढ़ एवं उच्च तैलीय लकड़ी पर ही किया जा सकता है, क्योंकि दृढ एवं उच्च तैलीय लकड़ी में तार को कसने या जड़ने से तार ढीला नहीं पड़ता है। अतः 'इनले वर्क' में शीशम एवं अन्य पेड़ की दृढ़ लकड़ी प्रयुक्त की जाती है। इस कला में लकड़ी पर तारों द्वारा कलात्मक पैटर्न बनाया जाता है। यह पैटर्न आमतौर पर जटिल ज्यामितीय रूपों या मुगल कला के फूलों-पत्तिय