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List of Threatened endangered Animals in Rajasthan

List of Rare, Threatened and Endangered Animals of Rajasthan राजस्थान के दुर्लभ, संकटग्रस्त और लुप्तप्राय जीवों की सूची     क्र.सं.  नाम वैज्ञानिक नाम उपलब्धता स्थल -   स्तनपायी (MAMMALS) - - 1 बाघ (Tiger) पेंथेरा टाइगरिस सवाईमाधोपुर, अलवर 2 तेंदुआ (Leopard) पेंथेरा पार्दुस समस्त राजस्थान 3 स्लोथ भालू (Sloth Bear) मेलुर्सस अर्सिनस सवाईमाधोपुर, धोलपुर, जालोर 4 उड़न छिपकली (Common Giant Flying Squirrel) पेटौरिस्टा पेटौरिस्टा सीतामाता अभ्यारण्य (प्रतापगढ़), फुलवारी की नाल (उदयपुर) 5 त्रिधारी पाम गिलहरी (Three Striped Palm Squirrel) फुनाम्बुलस पाल्मारम फुलवारी की नाल अभ्यारण्य (उदयपुर) 6 चौसिंगा (Four Horned Antelope) टेट्रासेरस क्वाड्रीकार्निस कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य 7 चूहा- हिरण (Mouse Deer) ट्रेगुलस मेमिन्ना फुलवारी की नाल अभ्यारण्य उदयपुर 8 स्मूथ भारतीय ऊदबिलाव (Smooth Indian Otter) लुट्रा पेर्स्पीसिल्लटा घाना (भरतपुर), चम्बल नदी 9 गंगा नदी डॉल्फिन प्लटनिस्टा गंगाटिका चम्बल नदी 10 स्याहगोश ( Caracal) फेलिस काराकल सरिस्का, रणथम्भौ

राजस्थान में वानिकी कार्यक्रम

राजस्थान में वानिकी कार्यक्रम - अरावली वृक्षारोपण योजना ( 01.04.1992 से 31-3-2000) -  अरावली क्षेत्र को हरा भरा करने के लिए जापान सरकार (OECF - overseas economic co. fund) के सहयोग से 01.04.1992 को यह परियोजना 10 जिलों (अलवर,जयपुर,नागौर, झुंझनूं, पाली, सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, दौसा, चितौड़गढ़) में 31 मार्च 2000 तक चलाई गई। मरूस्थल वृक्षारोपण परियोजना -  मरूस्थल क्षेत्र में मरूस्थल के विस्तार को रोकने के लिए 1978 में 10 जिलों में चलाई गई। इस परियोजना में केन्द्र व राज्य सरकार की भागीदारी 75:25 की थी। वानिकी विकास कार्यक्रम (1995-96 से 2002) -  1995-96 से लेकर 2002 तक जापान सरकार के सहयोग से यह कार्यक्रम 15 गैर मरूस्थलीय जिलों में चलाया गया। इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र वृक्षारोपण परियोजना (1991 से 2002) -    सन् 1991 में IGNP किनारे किनारे वृक्षारोपण एवं चारागाह हेतु यह कार्यक्रम भी जापान सरकार के सहयोग से चलाया गया। यह कार्यक्रम 2002 में पूरा हो गया। राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना फेज 1 - वनों की बढोतरी के अलावा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु यह का

Keoladeo National Park- Haven for Bird पक्षियों के लिए स्वर्ग केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान

पक्षियों के लिए स्वर्ग केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान  Keoladeo National Park- Haven for Bird भरतपुर स्थित केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान जिसे केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, को विश्व का सबसे महत्वपूर्ण पक्षी प्रजनन और आहार क्षेत्र में से एक माना जाता है। इस उद्यान में शरद ऋतु में सैंकड़ों प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अफगानिस्तान, तुर्की, चीन और सुदूर साइबेरिया से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के घना पहुँचते हैं तथा यह परंपरा सैंकड़ों वर्षों से जारी है। करीब यह पूर्व में "भरतपुर पक्षी अभयारण्य" के रूप में जाना जाता था। इसे 1850 के दशक में एक शाही शिकार रिजर्व के रूप में संरक्षित किया गया था तथा भरतपुर के महाराजा और ब्रिटिश अफसरों के लिए एक गेम रिज़र्व था। इस क्षेत्र में 1936 से 1943 तक भारत के ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने अपनी शिकार पार्टी में हजारों पक्षी मार गिराए थे। उन दिनों पक्षियों के शिकार का शौक में इस कदर वृद्धि हो गई कि सन 1927 में महाराज अलवर के आगमन पर आयोजित शिकार में यहां 1453 पक्षी गोलियों से भूने गये। सन 1936 में वायसराय लार्ड लिना

अरावली देववन संरक्षण अभियान

अरावली पर्वत श्रृंखला में बसे हुए गांवों के आस-पास ग्राम-देवियों और देवताओं के स्थान को देवरा कहा जाता है। इन देवस्थानों के चारों और विशाल वृक्ष बहुतायत से मिलते है। ये प्रजातियाँ  किसी न किसी देववन में पायी जाती है। इस प्रकार के वनकुंजों को देववन कहा जाता है। ग्रामवासी देववन की वनस्पति को कोई हानि नहीं पहुंचाते। अरावली में ऎसे देववनों की परम्परा है। पशु चराई, अतिक्रमण, निर्वनीकरण, खनन, एनीकट, निर्माण, कटान आदि के कारण वन विभाग देव वनों को बचाने का प्रयास कर रही है। जो ग्रामवासियों को देवरा स्थल पर विशाल मन्दिर बनाने का प्रलोभन देकर विशाल वृक्षों को काटने का प्रयास करते हैं, उन लोगों के खिलाफ वन विभाग वन अधिनियमों के तहत सख्त कार्यवाही करती है। मालपुरा पीपलामाता एवं बलिया खेड़ा बड़ला भेरू जी ऎसे ही उदाहरण है, जहां मन्दिरों के साथ वन सुरक्षित हैं। उदयपुर (दक्षिण) वनमण्डल द्वारा वर्ष 1992 से भारत में अपनी तरह का अनूठा अभियान अरावली देव-वन संरक्षण अभियान प्रारम्भ किया गया था ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को नष्ट होने से बचाया जा सके। अभियान के अन्तर्गत ग्राम वन सुरक्षा एवं प्रबन्